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Santh Shree Murlidhar Ji Vaishnav

30 जन॰ 2013

Article - पुण्य का मौका गँवाने वाले फिर नहीं पाते मनुष्य योनि - - डॉ. दीपक आचार्य

चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य योनि प्राप्त होती है। ऎसा माना जाता है कि पाप और पुण्य जब बराबर हो जाते हैं तब जीवात्मा को मनुष्य देह प्राप्त होती है। ऎसे में भी अपेक्षाकृत पुण्य की मात्रा थोड़ी अधिक होने पर उच्च वर्ण व कुल,राजयोगयशसौभाग्य आदि प्राप्त होते हैं। इसी के अनुसार जीवन यात्रा होती है।
      मनुष्य योनि प्राप्त होने के बाद पुण्यों का प्रतिशत बढ़ाने का जिम्मा भगवान ने यह मनुष्य के हाथ में सौंप रखा है। पूरे जीवन में संचित पुण्यों की अधिकता रहने की स्थिति में ही भाग्यशाली लोग दुबारा मनुष्य जन्म प्राप्त कर पाते हैं। इसलिए जीवन में पाप कर्र्मों के परित्याग और पुण्य संचय की ओर ध्यान देना मनुष्य का सर्वोपरि लक्ष्य होना चाहिए। पुण्यों का सीधा संबंध परोपकार से है।
      महर्षि वेद व्यास ने अठारह पुराणों का जो सार निकाला है उसे परवर्ती आचार्यों ने इस प्रकार बताया है - अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचन द्वयपरोपकाराय पुण्याय,पापाप परपीड़िनम। अर्थात सार यह है कि परोपकार ही पुण्य है और किसी को भी पीड़ित करना ही पाप है। इस दृष्टि से जीवन में परोपकार का ग्राफ बढ़ेगा तो पुण्य अपने आप संचित होंगे। वहीं आपके द्वारा कोई भी मानसिक या शारीरिक रूप से पीड़ित होगा तो उसे पाप की श्रेणी में रखा जाएगा और आपके पापों का भार बढ़ता रहेगा।
      परोपकार का अर्थ मन्दिर में दान-धरम करनासंत-महात्मा या मठाधीश को रुपए-पैसे देनामन्दिर बनवानाअनुष्ठान करवानादिन में घूम-घूम कर पैसा इकट्ठा करने और रात में दारू पी जाने के आदी भ्रष्ट भिखारियों को दान करना,  मूर्ति प्रतिष्ठा और यज्ञ कराना आदि नहीं है बल्कि परोपकार का सीधा रिश्ता उस काम से है जिसकी सर्वाधिक जरूरत है।
      किसी भी जरूरतमन्द को उसकी आवश्यकता की वस्तु या सहयोग समय पर प्राप्त हो जाए वहीं धर्म और पुण्य है। किसी बीमार को दवाई व चिकित्साभूखे को भोजनप्यासे को पानीशिक्षार्थी को शिक्षण सामग्री और गरीब को सहायता आदि मिल जाना ही अमृत है और यही परोपकार आगे चलकर पुण्य में परिवर्तित हो जाता है।
      आज अपने आस-पास कितने ही राजनेताढेरों नामों और उपनामों वाले अफसरों और समर्थ लोगों की भीड़ है जिनके पिछले जन्मों के अच्छे कर्मों और पुण्यों की बदौलत परमात्मा ने इन्हें मनुष्य बनाया है। लेकिन मनुष्यता की कसौटी पर इनमें से कितने खरे उतरते हैं इसे लोग अच्छी तरह जानते हैं।
      इन लोगों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि भगवान ने मनुष्य के रूप में यह अंतिम अवसर दिया है और इस अवसर के जरिये भी वे परोपकार करके पुण्य नहीं कमा सकते तो फिर भगवान मनुष्य के रूप में जीवन निर्वाह में इन्हें विफल मानकर पशुओं की योनि में धकेल देगा। राजधर्म और मनुष्य धर्म में सामंजस्य बिठाते हुए यदि वे इस जन्म में कुछ न कर पाएं तो यह उनकी विफलता ही है। अन्यथा भगवान ने तो उन्हें मौका दिया था। यहां तक कि सरकारी अफसरों और नेताओं के पास राज के धन से पुण्य का मौका मिलता है लेकिन वहां भी वे पुण्य संचय नहीं कर पाते हैं और सिर्फ अपने स्वार्थों में डूबे रहते हैं।  
      परोपकार से जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और उनके आशीर्वाद से परोपकार करने वाला पूरी जिन्दगी ऎश्वर्य प्राप्त करता रहता है। ऎसे लोगों के घरों और आफिसों में रोजाना कई जरूरतमन्द और समस्याग्रस्त लोग आते हैं। इनकी सहायता करना अपने आप में परोपकार है।
      अफसरों की आज कई प्रजातियां हैं मसलन आईएएसआईपीएसआरएएस,आरपीएसआरटीएसआरएसीएसआरईएस ... और भी जाने क्या-क्या। इसी तरह राज से जुड़े नेताओं की भी कई किस्मे प्रचलन में हैं। ये वे सब लोग हैं जिन्हें भगवान ने मौका दिया है। इस अंतिम मौके को गँवाने के बाद फिर अगले जनम में ये किस रूप में सामने आएंगेयह कोई नहीं कह सकता लेकिन इतना अवश्य है कि राजधर्म और मनुष्य धर्म का पालन करने में विफल रहने वाले लोग पुण्य संचय नहीं कर पाने की वजह से कम से कम मनुष्य तो बन ही नहीं सकते क्योंकि भगवान इन्हें अच्छी तरह परख चुका होता है।
      परोपकार और पुण्य संचय छोटे-छोटे अवसरों से होता है। यह तय कर लें कि आपके सम्पर्क में या आपके पास जो भी आएगाउस जरूरतमन्द को आप सहयोग करेंगे और आपके हस्ताक्षर या मार्गदर्शन से किसी का भला होता है तो आप ऎसे काम को किसके लिए बाकी छोड़ रहे हैं। अपने पास आए आदमी को टालें नहींस्पष्ट जवाब दें। हरसंभव कोशिश करें कि आपके सम्पर्क में एक बार आ पहुंचा आदमी आपको जिन्दगी में कभी न भूले और दुआएं ही दे।
      जो कोई व्यक्ति समस्याग्रस्त होकर आपके पास आता है उसकी समस्या दूर न कर सकें तो आपकी कुर्सी और आपका पद किस काम का है। आपका जन्म इसलिये थोड़े हुआ है कि जिन्दगी भर सरकार की कमाई में सेंध लगाएं और ऊपरी कमाई के ढेर पैदा कर मर जाएं। और तब इस धन की रक्षा करने के लिए आपको कुण्डली मारकर सैकड़ों वर्ष यों ही बैठने के सिवा कोई चारा नहीं है। इस धन का न आप उपयोग कर सकते हैंन किसी को आप करने देंगे।
      यह याद रखना होगा कि जायज काम को न करना और नाजायज कामों में रमे रहना पाप की श्रेणी में है। इसलिए ऎसा करते रहने से आपके पापों की गठरी दिन ब दिन मोटी होकर विस्तार पाती जाएगी। किसी भी पात्र आदमी का जायज काम नहीं होने पर उसके मन से जो बद्दुआएं लगती हैं वे भी आपके पापों को बहुगुणित करती हैं।
      आप नेता होंअफसर हों या बाबूबिजनैसमेन हों या और कोईआपका फर्ज बनता है कि सरकार ने और समाज ने आपको जो मौका दिया है उसका पूरा लाभ अपने क्षेत्र के लोगों को पहुंचायें। आज सरकार की कितनी ही योजनाएं हैं जिनसे लोगों को लाभ पहुंचाया जा सकता है। ऎसे में सभी विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों का दायित्व बनता है कि लोगों को इनसे जोड़ें। सरकारी साधन-सुविधाओं और सामथ्र्य के साथ ही सरकारी धन से भी आप जरूरतमन्दों का उपकार न कर सकें तो फिर आपका मनुष्य होना बेकार है। इस बात का चिंतन सभी को करना चाहिए।
      यह तय मानकर चलें कि जो सक्षम लोग इस प्रकार का परोपकार नहीं करते हैं उनके भीतर पुराने जन्मों की पशुता भरी होती है। इन लोगों के चेहरों को आप गौर से देखेंगे तो आपको इनकी शक्ल में किसी न किसी खूंखार जानवर या राक्षस का चेहरा देखने को मिल ही जाएगा।
      ऎसे लोग सरकार की ओर से सब कुछ होने के बावजूद गरीब आदमी और जरूरतमन्द का भला नहीं कर सकतेकरेंगे भी तो रिश्वत की विष्ठा खा कर । तब आप इनके चेहरे में सूअर का अक्स पाएंगे जो गंदगी में थूथन लगाए हरदम मस्त रहता है।
      कितने ही ऎसे राजधर्मी लोग हैं जिनके पास असीमित शक्तियां हैं मगर वे इनका उपयोग परोपकार और पुण्य संचय में नहीं कर पाते। कोई दारू का आदी होकर दिन-रात पशुवत पड़ा हुआ है तो कोई मुर्गों और बकरों के मोक्ष में जुटा रहता है। ऎसे ही पशुवत विलासिता वालों की भी कोई कमी नहीं है। कई ऎसे हैं जिनके लिए राजधर्मी पद ऎशो-आराम की जिन्दगी का नाम है। इन्हें न जनता की पड़ी है न अपने काम की।
      बहुतेरे राजधर्मी रुपयों-पैसों के पीछे पागल हुए जा रहे हैं। इन्हें पता ही नहीं है कि अगले जन्म में इनको जो योनि मिलने वाली है उसमें जब कपड़े ही नहीं होते तो जेब कहाँ होगी। न लॉकर होता हैन आलीशान बंगला। फिर जो धन पाप से कमाया है उस ऋण को उतारते-उतारते कई जन्मों तक लदना पड़ेगा।
      जो जहाँ काम कर रहा है वहाँ इस संकल्प से काम करें कि उनके सम्पर्क में जो आएगा या उनकी निगाह में जो जरूरतमन्द आएगा उसकी भली प्रकार सेवा व सहयोग करेंगे तथा भगवान ने सत्ता और कुर्सी का जो अवसर दिया है उसके हर क्षण का उपयोग परोपकार और पुण्य संचय में करेंगे तभी आने वाले जन्म में फिर से मनुष्य बनकर जीने की कल्पना करनी चाहिए। अन्यथा जो चल रहा है वह ठीक है ही। कौन पूछने वाला है। जो पूछने वाला है वह तो बाद में हिसाब करेगा ही।
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अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण सेवा संघ की राष्ट्रीय कार्यकारणी बैठक की जलकिया ।

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