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Santh Shree Murlidhar Ji Vaishnav

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हनुमान चालीसा का पाठ क्यों करें?






कलयुग में हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमान अपने भक्तों और धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों की हर कदम मदद करते हैं। सीता माता के दिए वरदान के प्रभाव से वे अमर हैं और किसी ना किसी रूप में अपने भक्तों के साथ रहते हैं।

हनुमानजी को मनाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ। हनुमानजी की यह स्तुति का सबसे सरल और सुरीली है। इसके पाठ से भक्त को असीम आनंद की प्राप्ति होती है। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा बहुत प्रभावकारी है। इसकी सभी चौपाइयां मंत्र ही हैं। जिनके निरंतर जप से ये सिद्ध हो जाती है और पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो जाती है।

यदि आप मानसिक अशांति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई समस्यां सता रही है तो ऐसे में सभी ज्ञानी विद्वानों द्वारा हनुमान चालीसा के पाठ की सलाह दी जाती है। इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें को शंका या संदेह नहीं है। यह बात लोगों ने साक्षात् अनुभव की होगी की हनुमान चालीसा के पाठ से मन को शांति और कई समस्याओं के हल स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए कोई विशेष समय निर्धारित नहीं किया गया है। भक्त कभी भी शुद्ध मन से हनुमान चालीसा का पाठ कर सकता है।
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पंचगव्य सेवन धार्मिक और वैज्ञानिक रहस्य

डा.लक्ष्मीनारायण वैष्णव
दमोह सनातन धर्म विश्व  का सबसे प्राचीन धर्म बतलाया गया है सनातन और सत्य के साथ ही लोक परलोक के साथ स्वास्थ्य और वैज्ञानिक रहस्यों से भरा पडा है। जिन रहस्यों को वैज्ञानिक आज भी सुलझाने से कोसों दूर दिखलायी देते हैं उनको कडोरों बर्ष पूर्व ही हमारे ऋषि मुनियों ने समझ लिया था। जिसको पूरी प्रमाणिकता के साथ रखते हुये उसके वैज्ञानिक और धार्मिक रहस्यों को उजागर करते हुये लाभ-और हानि से परिचित करा दिया था। सनातन धर्म के शात्रो  में वर्णित पुजन पद्धति की ओर नजर डालें तो आप पायेंगे कि यह पूर्णत: विज्ञान पर आधारित है। इसमें एक विशेष चीज का रहस्य से हम आपको परिचित कराने का प्रयास कर रहे हैं वह है ''पंचगव्य जिसको लेकर आयुर्वेद में भी वर्णन किया गया है। हजारों बीमारियों से लडने की शक्ति  को  उत्पन्न मनुष्य के शरीर करने के साथ रोगों के कीटाणुओं का दमन करने की विशेष क्षमता इसमें बतलायी गयी है। गाय के मूत्र,गौबर,दूध,दही और घी को निश्चित  मात्रा में मिलाकर तैयार किये जाने वाले ''पंचगव्य का सेवन शायद ही एैसा कोर्इ धार्मिक अनुष्ठान हो जिसमें प्रयोग न किया जाता हो? सनातन धर्म के लगभग प्रत्येक संस्कार -पूजन,यज्ञादि कर्म इसके बिना पूरे नही  किये जाते। प्राचीन काल से ही प्रसव के बाद हुये सूतक दोष को समाप्त करने के लिये स्त्री  को पंचगव्य के सेवन कराने की परंपरा है। वही  दूसरी ओर किसी ब्रम्हचारी एवं साधू,संत का व्रत लेने के पूर्व किये जाने वाले उपनयन संस्कार की बात करें या फिर यज्ञोपवित धारण करने की या फिर विवाह संस्कार की सभी में इसका प्रयोग अनिवार्य बतलाया गया है। इसके बिना यह पूर्ण नही  माने जाते हैं । हवन पूजन के पश्चात  पंचामृत का वितरण करना एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है जिसमें मुख्य घटक के रूप में गाय का घी,दूध,दही को मिलाया जाता है। इसके महत्व की ओर अगर द्रष्टि  डालें तो स्कन्द पुराण में वर्णित एक श्लोक  के भावार्थ के अनुसार गौ मूत्र,गौबर एवं गाय की पूंछ में भूत,प्रेत ,टोना ,टोटका एवं नजर लगने के प्रभाव को खत्म करने की अदभुत क्षमता है। योगीराज भगवान श्री—ष्ण के द्वारा जब राक्षसी पूतना का वध किया गया तो माता यशोदा ने कन्हैया को अपने गोद में उठाकर लाकर गाय की पुंछ को चारों ओर घुमाया एवं गाय के मूत्र एवं गौबर से स्नान कराया था। धार्मिक ग्रन्थों के साथ ही आयुर्वेद में वर्णित गाय की महिम  पर नजर डालें तो वन में विचरण कर चरने वाली गाय के दूध,दही,गौबर,मूत्र और घी यादा प्रभावशाली होते हैं। 

कैसे होता है निर्माण-धार्मिक ग्रन्थों में दिये गये विधानों के अनुसार एक ताम्र पात्र में गाय का घी एक भाग ,दही दो भाग,दूध तीन भाग गोमय आधा भाग एवं गौ मूत्र और कुशोदक एक भाग लेकर एक साथ मिलाने से ''पंचगव्य तैयार किया जाता है। 
क्या होता है प्रभाव-आयुर्वेद में वर्णित महिमा के अनुसार ''पंचगव्य के सेवन से कैसा ही बिष क्यों न हो इसमें डाल देने से मात्र तीन दिवस में जहर का प्रभाव समाप्त हो जाता है। शरीर के मोटापा को हटाने के साथ ही टी बी की बीमारी को भी नष्ट्र करने की क्षमता है। यह पेट की अगि़ को उष्ण करने वाला यानि पाचक,एवं तीनो दोषों की  विकृति  को समाप्त करने वाला है। वैज्ञानिक एवं चिकित्सा शास्त्र  की दृषिट से देखें तो इसमें प्रोटीन,कार्बोनिक एसिड,फास्फेट,पोटाश,लवण,यूरिक एसिड,यूरिया एवं लेक्टोज जैसे रसानिक तत्वों की उपसिथति रहती है। गौ मूत्र में ही अकेले मुख,चर्म,उदर,गुदा स्नायु,नेत्र,असिथ एवं कर्ण की व्याधियों को समाप्त करने की अटूट  क्षमता है। 

महत्च को ऋषियों ने पहचाना-अनादिकाल से ही चली आ रही उक्त  परंपरा के बारे मे हमारे ऋषियों ने इसकी महत्वता को पहचान लिया था। इसकी उपयोगिता को दृषिट्रगत रखते हुये भारी मात्रा इसका उत्पादन किया जाता था। कहने का अभिप्राय है कि गौ पालन पर विशेष ध्यान दिया जाता था। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार महाराज युधिष्ठर के पास उस समय आठ करोड गायें वह भी विभिन्न प्रकार की नस्लों की थी। इस समय गौ सम्पदा को विशेष महत्व दिया जाता था। गाय दान देना और लेना सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण कार्य माना गया है। प्राचीन समय में परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं को दैनिक रूप की क्रिया कलापों 




संत सम्राट कबीर ने न तो माँ के गर्भ से जन्म लिया न ही कभी गृहस्थी बसाई। कालांतर में लोगों ने कल्पना कर के साहित्य में इस बात को भ्रमवश डाल दिया। यह एक कल्पित कहानी है कि कबीर साहिब ने लोई नाम की महिला से विवाह किया था। कमाल कमाली इनके बेटा बेटी थे। यह केवल काल्पनिक कथा है। वास्तव में लोई का मतलब है - भक्ति। साहिब ने नदी में बहते एक मुर्दे को जीवित कर दिखाया था जिस पर पास खड़े एक धर्म के धर्मगुरु ने बोला यह तो कमाल है। इस पर उसका नाम कमाल हो गया उसका कबीर साहिब से कोई नाता नहीं था। इसी प्रकार कमाली भी उसी धर्मगुरु की बेटी थी जिसको मृत्यु होने पर दफना दिया था। उस धर्मगुरु ने कबीर साहिब को परीक्षा लेने हेतु जीवित करने के लिए कहा था। साहिब के कहने पर वह उठ खड़ी हुई। वही कमाली कहलाई। कबीर साहिब अखंड ब्रह्मचारी थे उन्होंने कभी विवाह नहीं किया था।




कुदरत ने दिया जो..............

खुद परस्त इस जहां से मैं, निबाह करू कैसे
पाक रहने की कसम खाई है, गुनाह करू कैसे

                  कहता है जमाना मेरे साथ, चल मेरे साथ चल
                  दुनिया की इस भीड़ में खुद को, गुमराह करू कैसे

सिर झुका के चलना मेरी फितरत में नहीं
बुजदिल की तरह सबसे, सुलाह करू कैसे

         जमीं पर रहने वाला हूँ ,क्यूं आसमां की बात करू
         कीकत से परे होकर जिन्दगी अपनी, तबाह करू कैसे

कुदरत ने दिया जो ये, सलौना रंग मुझे
अपनी इस रूह को ‘सागर‘ सियाह करू कैसे।



       रचियता
एन.डी.निम्बावत ‘सागर‘
‘श्रीराम‘ 
106, शिवनाथ नगर, सूथला, चौपासनी रोड़, जोधपुर
09314713779 (मो.)





दिवंगत सत्यनारायणजी ’’तरूण साहब’’ को श्रद्धांजली

तरूण साहब की तरूणाई से हम सब पे्ररणा लेंगे। 
सदा सेवा को तत्पर रह, सभी से पे्रम कर लेंगे। 
लगन, निष्ठा, परिश्रम से संवारे सबके जीवन को। 
कष्ट में हो कोई वैष्णव तो उसका कष्ट हर लेंगे। 

    तपस्वी, त्याग की मुर्ति को करते हम सभी वन्दन। 
    आत्मा शान्त हो उनकी, प्रार्थना है रघुनन्दन। 
    स्वार्थ से उठ गये ऊचे योग परमार्थ का साधा। 
    स्वीकारे स्वर्ग में रहकर, हमारा ये अभिनन्दन।    

तोडना है बहुत आसाँ जोडना है बहुत मुश्किल।  
रूठना है बहुत आसाँ, मनाना है बहुत मुश्किल। 
स्वयं के वास्ते जीना, कोई जीना नहीं होता। 
जीये औरों के खातिर, भावना ऐसी बहुत मुश्किल। 

रूढियाँ तोडकर आगे बढो, संदेश है उनका। 
  सीढीयां जोडकर आगे बढो, संदेश हे उनका। 
  निरक्षर ना रहे कोई भी वैष्णव देश में अपने। 
  पढाओं औरों को खुद भी पढो, संदेश है उनका। 

संपादन वैष्णव सेवक का किया भरपुर निष्ठा से।         
सामाजिक चेतना का, शंख फूँंका भरपुन निष्ठा से। 
अनेको बार सम्मानित हुए है, देश में अपने। 
किया निर्वाह हर पद का, ’तरूण’ ने भरपुर निष्ठा से। 

        वैष्णवो का सदा उत्थान हो थी भावना उनकी।   
  संगठन एक ही हो राष्ट्र में थी भावना उनकी। 
  सभी को साथ लेकर कारवां बढता रहे आगे। 
  जुदाई में मिलन होगा, यही थी भावना उनकी। 

समर्पित कर रहे श्रद्धासुमन, हम उस प्रतिभा को।
जो अर्पित कर गया तन मन, नमन है उस प्रतिभा को। 
यशस्वी हो गया जीवन, प्रणेता बन गये अपने। 
हंै गर्वित हम सभी वैष्णव, स्मरण कर उस प्रतिभा को।  

 मोहनदास वैष्णव 


शान्ता कुन्ज   


2-बी-12, हाउसिंग बोर्ड 
बांसवाड़ा राजस्थान 
मो. 9414656170   





वैष्णव संप्रदाय के उप संप्रदाय : 
वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय है- जैसे बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ,
सखी, गौड़ीय आदि। वैष्णव का मूलरूप आदित्य या  सूर्य  देव की  आराधना  में  मिलता है। भगवान  
विष्णु का वर्णन भी वेदों में मिलता है। पुराणों में विष्णु पुराण प्रमुख से प्रसिद्ध है। विष्णु का 
निवास समुद्र के भीतर माना गया है।

* विष्णु के अवतार 


शास्त्रों में विष्णु के 24 अवतार बताए हैं, लेकिन प्रमुख दस अवतार माने जाते हैं- 

मतस्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बु‍द्ध और कल्कि। 
24 अवतारों का क्रम निम्न है-1.आदि परषु, 2.चार सनतकुमार, 3.वराह,
4.नारद, 5.नर-नारायण, 6. कपिल, 7दत्तात्रेय,8.याज्ञ, 9.ऋषभ, 10.पृथु,
11.मतस्य, 12.कच्छप, 13.धनवंतरी, 14.मोहिनी, 15.नृसिंह, 16.हयग्रीव, 
17.वामन, 18.परशुराम, 19.व्यास, 20.राम, 21.बलराम, 22.कृष्ण, 23.बुद्ध और 24.कल्कि।

* वैष्णव ग्रंथ : ऋग्वेद में

वैष्णव विचारधारा का उल्लेख मिलता है। ईश्वर संहिता, पाद्मतन्त, विष्णुसंहिता, शतपथ

 ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, महाभारत, रामायण, विष्णु पुराण आदि।

* वैष्णव तीर्थ :   

बद्रीधाम (badrinath), मथुरा (mathura), अयोध्या (ayodhya), तिरुपति बालाजी, श्रीनाथ,
 द्वारकाधीश।

* वैष्णव संस्कार : 
1.वैष्णव मंदिर में विष्णु, राम और कृष्ण की मूर्तियाँ होती हैं। एकेश्‍वरवाद के प्रति कट्टरनहीं है।,
2. इसके संन्यासी सिर मुंडाकर चोटी रखते हैं।, 
3.इसके अनुयायी दशाकर्म के दौरान सिर मुंडाते वक्त चोटी रखते हैं।,
4.ये सभी अनुष्ठान दिन में करते हैं।,
5. यह सात्विक मंत्रों को महत्व देते हैं।,
6.जनेऊ धारण कर पितांबरी वस्त्र पहनते हैं और हाथ में कमंडल तथा दंडी रखते हैं।,
7.वैष्णव सूर्य पर आधारित व्रत उपवास करते हैं।,
8.वैष्णव दाह संस्कार की रीति हैं।,
10.यह चंदन का तीलक खड़ा लगाते हैं।

वैष्णव साधु-संत : 


वैष्णव साधुओं को आचार्य, संत, स्वामी आदि कहा जाता है।

नोट : मान्यता हैं कि हिन्दू धर्म में आमजनों को अग्निदाह और साधुओं को समाधि दी

     जाती है। उक्त जानकारी आमजनों को समझने हेतु सक्षिप्त रूप में प्रस्तुत की गई है।
     इसे पूर्ण ना समझा जाए।

Jitendra  vaishnav



अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण सेवा संघ की राष्ट्रीय कार्यकारणी बैठक की जलकिया ।

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