
ऐसे व्यक्ति अपने- अपने कुल की पहचान बनाए रख कर वैष्णव संबोधन का उपयोग कर सकते हैं। इस प्रकार वैष्णव गुरू का शिष्यत्व स्वीकार करने वाला हर व्यक्ति वैष्णव है। चाहे वह किसी जाति, कुल, या परिवार से संबंधित हो। ऐसे व्यक्ति को वैष्णव मतानुसार द्वादस चिह्न धारण करने अनिवार्य नहीं है। कोई भी सद्गृहस्थ वैष्णव हो सकता है।
-- जिन व्यक्तियों ने वैष्णव मत में दीक्षित हो कर वैष्णव गुरू के सान्निध्य में ज्ञानार्जन करके वैष्णव मत की शिक्षा पूर्ण करके श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञान अर्जित किया है, और अपने कुल का परित्याग कर अपना व अपने परिवार का जीवन सनातन धर्म की रक्षा हेतु समर्पित करते हुए गुरूकुल को अपनाया है, ऐसे ब्रह्म ज्ञाता कुल में उत्पन्न हर व्यक्ति को वैष्णव ब्राह्मण संबोधन से संबोधित किया जाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति गुरूकुल के रूप में किसी द्वारापीठ के गौत्र से पहचाने जाते हैं।
-- जिन्होंने वैष्णव मत की उच्चतम शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन का समर्पण केवल और केवल सनातन धर्म की रक्षा के लिए और वैष्णव मत के प्रचार के लिए करते हुए आजन्म ब्रह्चर्य व्रत लेकर वैराग्य धारण कर लिया है , ऐसे परम श्रद्धेय पुरुष श्रेष्ठ ही वैष्णव वैरागी कहलाने योग्य हैं।
-- इन तीनों संबोधनो में अंतर की हम इस प्रकार व्याख्या कर सकते हैं -- कि कोई व्यक्ति वैष्णव मत में प्रवेषिका उत्तीर्ण है, वह वैष्णव, जो स्नातक, अधिस्नातक है, वे वैष्णव ब्राह्मण और जो उच्च शोध में संलग्न होकर अपना सर्वस्व त्याग चुके हैं वे वैष्णव वैरागी हैं।
-- अब आप अपने को किस संबोधन के योग्य पाते आप स्वयं मूल्यांकन कर लीजिए।
अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजियेगा। संपर्क - Thirpal Das Vaishnav <t.d.vaishnav@gmail.com> +91 9462 250 131