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Santh Shree Murlidhar Ji Vaishnav

27 जून 2014

                                       दिशाहिन है देश आज जनता नेतृत्व चाहती है  
  लोकतंत्र की मूल अवधारणा - जनता नेजनता के लिएजनता के द्वारा आभासी हो गयी हैगणतंत्र की अवधारणा भी कही पीछे छूटती नजर आ रही है हर राज्य अपनी अलग पहचान बनाने में राष्ट्रहित  को हाशिये पर रख  रहा है देश का शीर्ष नेतृत्व राजधर्म छोड़ गद्बंधन धर्म ज्यादा निभा रहा है विपक्ष में भविष्य के काल्पनिक पद की दौड़ अभी से चालू हो गयी है विपक्ष का काम हमारी संसदीय प्रणाली में सत्ता पक्ष पर लगाम रखने का होता है ऐसी कोई तत्परता विपक्ष दिखा नहीं रहा सत्तापक्ष हो या विपक्ष  सब स्वयम्भू सत्ताधीश बने बैठे है हर किसी ने स्थानीय या राष्ट्रिय  तथाकथित गतिविधियों  में  से किसी एक गतिविधि को चुन कर उसमे अपने हिस्से का पैसा बना रहे है सभी बिल्लियाँ  आँख बंद कर दूध पिने में लगी है  कोई किसी को नहीं देख रहा |

    पत्रकारिता का गला तो  बाजारवाद के चक्रवियुह में फस कर बंद हो गया है TRP ही समाचारों की नियति तय करती है न्यूज़ चेनल मनोरंजन चेनलो की तरह कार्य करते है खबर देने के बजाये ऐसा लगता है की कई बार ये  खुद पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो! निष्पक्ष  एवं तटस्थ रह कर खबर देने की बजाय  ये  'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताका व्यावसायिक उपयोग करते ज्यादा दिखाई पड़ते है 
अब बात आती है न्याय पालिका की  वैसे  इस व्यवस्था ने अभी तक अपना सम्मान नहीं खोया पर असल में न्यायपालिका का सम्मान एवं भय उन्ही के मन में हे जो सत्ज्जन है पर दुर्जन एवं अपराधीयो को तो इस दंड विधा का उपयोग अपने फायदे में करना बखूबी आता है इसके लिए दोषी और कोई नहीं इस व्यवस्था की लचर प्रणाली ही है जो इसे कम प्रभावशाली बनती है वेसे लंबित मामलो की तेज सुनवाई के आसन रास्ते को अपना कर और ज्यादा प्रभावशाली बनाया जा सकता है
पूरी व्यवस्था के मूल में है  जनता  जिसे बोलने का अधिकार मिला है नेत्रत्व चुनने का अधिकार मिला है पर आज के समय में ये सारे  अधिकार आभासी हो गए है! क्योंक्योकि बोलना तभी सार्थक होगा जब कोई सुनाने वाला हो पर जनता की सुनता कोंन  है रही नेतृत्व चुनने की तो चुने किसे कोई हे ऐसा उमीदवार जिसे चुना जा सकता होवेसे भी हमारी चुनाव व्यवस्था में तो पहले ऊपर के लोग ही चुन लेते हे किस परिस्थिति में किसे कुर्सी पर बिठाना है और जनता भ्रम में रहती है की हम चुन कर भेज रहे है आज जरुरत लोकनेता की हे पर सत्ता राजनेता हतिया लेते है 
जनता मै भ्रष्टाचार को लेकर आक्रोश है पर जनता खुद कुंठित है क्योकी आज की शासन पद्धति इतनी गैर व्यावहारिक है  की यदि सरे नियमो के मापदंडो पर परखा जाये तो समाज का हर नागरिक कही न कही किसी नियम को न चाहते हुए भी तोड़ रहा है हम आवाज उठाने से पहले डरते है की कही हम किसी लपेटे में न आ जाये!!
कुछ लोगो ने जनता की आवाज़ भ्रष्टाचार एवं काले धन को ले कर उठाई पर उन में एक सफल नेतृत्व के गुणों का काफी आभाव दीखता है जैसे-दूरदर्शिता की कमी पारदर्शिता की कमी वाणी एवं सोच में  गंभीरता का आभाव
 एक सफल नेतृत्व के गुण ये होते है की जनभावना को सही दिशा दे पर ये लोग खुद ही कई बार दिशाहीन से दीखते है 
नेतृत्व को अपनी क्षमताओ का उपयोग पूरी शक्ति के साथ करना आना चाहिए जैसा वल्लभ भाई पटेल ने देश की रचना के समय किया था 
यदि क्षमता एवं शक्ति कम हो तो दूसरी रणनीति अपना कर छोटे-२ लक्ष निर्धारित कर उन्हें पाना चाहिए और अपनी शक्ति और क्षमता को बढाना चाहिए जैसा छत्रपति शिवाजी राजा ने किया था 
हमें ये बात नहीं भूलना चाहिए की व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव दो रास्तो से आते है क्रांति से या जाग्रति से क्रांति के बाद का समय एक सक्षम नेत्रत्व मांगता है वरना परिणाम विध्वंसक होगे अतः जाग्रति का मार्ग धीमा ही सही पर ज्यादा सही प्रतीत होता है जड़ो को सीचना होगा जड़ और कोई नहीं हम लोग ही है  'इस देश की जनता'  ये वक्त हे अपनी शुतुर्मुर्गीय आँखों को खोलने का अपने अधिकारों का सही उपयोग करने का!
  
                                                                                Pushpa hari vaishnav        
                                                        sendhwaaa

अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण सेवा संघ की राष्ट्रीय कार्यकारणी बैठक की जलकिया ।

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