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Santh Shree Murlidhar Ji Vaishnav

30 सित॰ 2012

क्या सफलता प्राप्ति ही सुख का आधार है ? पुष्पा हरी वैष्णव सेंधवा

जिन्दगी में हर व्यक्ति कामयाब होना चाहता है| अपने लक्ष्य को हासिल करके एक सफल पुरुष कहलाना चाहता है|  जिसके लिये वह जिन्दगी भर प्रयत्नशील रहता है| 
चुकीं मानव स्वभाव बड़ा ही चंचल होता है और उसकी इच्छाए एवं कामनाएँ भी अनंत होती है| फलस्वरूप वह एक लक्ष्य की प्राप्ति के बाद तुरंत दूसरा लक्ष्य बना लेता है | और लक्ष्य प्राप्ति का यह क्रम ताउम्र चलता ही रहता है| कुछ भी हासिल करने के इस क्रम के बिच एक सवाल यह उठता है की सफल व्यक्ति कौन है? सुखी व्यक्ति कौन है? संतुष्ट व्यक्ति कौन है?............... क्या वह जो लाखों -करोड़ों रु .का व्यापार करके एशो-आराम की गिन्दगी जी रहा है (?) या वह राजनेता जो देश सेवा के नाम पर अपनी सात पुश्तों तक के लिए धन बटोर कर बैठ गया है ? या वह किसान जिसकी धरती हर साल सोना उगलती है ? या अध्यापक जो अपने छात्रों को श्रेष्ठ शिक्षा देने में कामयाब हो गया है ? या वह क्लर्क जो अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के बाद रिटायरमेंट का आनन्द ले रहा है ? या वह खिलाडी जिसने शीर्ष के ख़िताब को भी जीत लिया है ?....
आखिर मनोवांछित सफलता के बाद तृप्ति का अहसास किसे है?
 यह एक यक्ष प्रश्न है ?.................
वैसे तो बिना किसी को दुःख पहुंचाए ,बिना किसी के हक़ को मारे ,एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के तहत जो-जो भी व्यक्ति अपने निर्धारित लक्ष्यों को पा लेते है वही व्यक्ति सफल माने जाते है, लेकिन मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक एवं आध्यात्मिक लोग अपने अलग-अलग मतों के द्वारा इसे अलग-अलग तरीके से परिभाषित करते है| जैसे:-समाजशास्त्रियों के अनुसार सफलता एक सोच है, जो कि महसूस करने वाले पर निर्भर करती है कि वह कितना सफल है? मनोवैज्ञानिक श्री मान डायनिक एरिजा' के अनुसार -"किसी चीज को पाना आंतरिक स्थिति है न की बाहरी | यह सच है कि बाहरी चीजें आंतरिक स्थिति को प्रेरणा देती है, लेकिन अंततः जो सफलता अंतर्मन में महसूस होती है वही सबसे महत्वपूर्ण है|" ..एक और लेखक फिल कोविन्गट' कहते है कि -"हमारे अन्दर सफलता की दो अवस्थाएँ होती है-पहली ,हमारे निर्णय पर आधारित होती है,जिसमें हम यह सोचते है कि सफलता हमारे लिए क्या है? और दूसरी वह बोध है, जिसमें हम जानते है कि इसके लिए (सफलता प्राप्ति के लिए) हम क्या कर सकते है? इसका मतलब यह हुआ कि सफलता का साधन -आंतरिक एवंमानसिक स्थिति है| अत:विद्वानों के मतानुसार"भावनात्मक समझ ही सफलता कीबेहतर भविष्य वक्ता होती है|" अर्थशास्त्री 'जानमार्क्स'  रुपयों के बल पर हर चाहत को पूरी कर लेने की ताकत रखने वाले को सफल मानतें है| बहरहाल
आज दुनियां में यही हो रहा है| आज रूपये की ताकत किसी भी डंडे से कम नहीं है| जिसकी लाठी उसकी भैस की तर्ज पर--आज का मुहावरा
यह है कि--"जिसके रूपये उसकी भैस | "चूंकि आज रुपया ही ताकत, पद, गरिमा और मान सम्मान का प्रतीक बन गया है| आज नैतिकता, ईमानदारी, चरित्र जैसे गुण स्तरहीन होते जा रहे है, अपने-पराये, दोस्ती-यारी, नाते- रिश्ते का कोई मोल नहीं है|जबकि एक जमाना था कि व्यक्ति के लिए अपनों का महत्व ज्यादा होता था वह अपनों के लिए जान देने तक को तैयार रहता था लेकिन आज मापदंड बदल गये है ,रुपया ही सफलता का सूचक बन गया है, अत:रुपया हासिल करने के लिए मनुष्य येन-केन-प्रकारेण सभी
हथकंडे अपना लेता है| और-तो-औरवो आज रुपयों कि खातिर अपनों कि जान भी ले-ले तो कोई नई बातनहीं है,  क्यों कि आज जेब में रुपया आना चाहिए तरीका कुछ भी हो या रास्ता कैसा भी हो| आज के समय में अपने आत्मीय आसपास हो या न हो रुपयों का ढेर आस पास जरुर होना चाहिए | वैसे परम ज्ञानी ,महान अर्थशास्त्री चाणक्य ने अर्थशास्त्र में क्या खूब कहा है कि ,"सामान्य के बीच योग्यता को साबित करना ही सफलता है|" इसके आलावा भारतीय आध्यात्म के अंतर्गत ऋषि-मुनियों एवं 
वेद- पुराणों ने भी "उन व्यक्तियों को ही सफल माना है
जो सांसारिक चीजो से उपर उठकर सोचते है|" ऐसे लोग सफलता प्राप्ति के लिए बड़े ही पावन लक्ष्यों को चुनते है और बड़ी ही नफासत एवं सकारात्मक सोच के साथ अपने लक्ष्यों को पाने के सार्थक प्रयास करते है | एसे लोग धन भी कमाते है और मानवता एवं समाज के कल्याणार्थ कार्य करने के लिए तन- मन- धन से तत्पर भी रहते है | वैसे लगातार प्रयत्न करने से सफलता तो निश्चित रूप से मिलती है, लेकिन कई बार नतीजे विपरीत भी आते है, तब डर कर, हार कर या किसी दुसरे कारण से गलत रास्ते कभी नहीं चुनना चाहिए क्योकि गलत बात या गलत तरीके के नतीजे तो हमेशा गलत ही होते है | अतः सार रूप मे यदि कहे तो आत्म संतुष्टि के साथ किसी कि दुःख पहुचाये बिना जो अपने लक्ष्यों को पा जाये वही सफलपुरुष है
और वही सुखी, संतुष्ट एवं तृप्त पुरुष भी है |

अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण सेवा संघ की राष्ट्रीय कार्यकारणी बैठक की जलकिया ।

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