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Santh Shree Murlidhar Ji Vaishnav

26 फ़र॰ 2013

"अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी "-क्या आज भी ? पुष्पा हरि वैष्णव , अग्रवाल कॉलोनी सेंधवा मो 09425415855


                                                 
 Article जहा  पर  नारी  को लक्ष्मी कहा जाता रहा हो और जिसके अस्तित्व  के किस्से युगों .युगों से बड़ी शान से कहे |  भारत जैसे आध्यात्मिक देश में जंहा स्त्रियों को देवी का दर्जा दिया जाता रहा हो, ऐसे देश में आज नारी न घरमे सुरक्षित है और न बाहर।प्रतिदिन अरवबार मे,रेडियो पर,एवम टी.वी. परबचिचयो तथा औरतो के साथ ज्यादतियो की रवबरेदेरव सुन कर एवम पढकर-देष के प्रत्येक सज्जन बुधिदजीवी पु़रुप एवम महिला का सिर षर्म से झुक-झुक जा रहा है।मन ग्लानी.दुख.एवम वितृप्णा से भरा जा रहा है-और सवालो के दष जो पुभ रहे है उनसे आत्मा लहुलुहान हो रही है।ऐसे मेदिमाग मेप्रष्नो के झझावात झिझोड-झिझोड कर पुछ रहे है कि क्या इसी दम पर हम कहते फिरते है एवम इतराते है कि-  यत्र नार्यन्तु पुज्यते रमन्ते तत्र देवता:।

       सवाल फिर उठता है कि जहा नारियो को पुजा जाता हो-वही तो देवता निवास करते हैंं परन्तु आज जब पुजना तो दूर नारियो के अपमान की जहा पराकाप्टा हो जाय उयके साथ ज्यादतियो कि इन्तहा हो जाये तथा अपमान-तिरस्कार एवम बलात्कार जैसी भटटी मे उसे झोक कर उसकी असिमता को तार-तार कर दिया जाता हो-वहा देवता कैसे निवास कर सकते है या कि रमण कर सकते हैे? तब फिर से सवाल यह उठता है कि जब और जहा देवता नही होगे तो निषिचत ही वहा दानव ही निवास करेगे? वैसे आजकल के ये दानव भी आधुनिक दानव है वर्ना सतयुगी दानवो के भी कुछ उसुल होते थे जैसे-रावण ने सीता का हरण तो जरुर किया था लेकिन षकितषाली समा्रट होने के बावजुद उनके साथ कभी कोर्इ ज्यादती नही की थी।रावण जबरन से न तो सीता जी को अपने ध्ांर ले गया और न उनके साथ अभद्र व्यवहार किया था।बलिक उन्हे महिला राक्षसी पहरेदारो के साथ ही रखा भी था जबकि आज के दानव तो चार पैरोवाले जानवरो कोभी मात कर रहे है-वे न मासुम बचिचयो को छोडते हे और न अधेड महिलाओ को।न वे एकान्त देखते है और न चहल-पहल वाली जगह। न वे रात देखते है न दिन। ओर तो ओर न वे रिष्ता देखते है न दोस्ती। उपर से तुर्रा ये है कि जब ये हैवान एक महिला या एक जवान लडकी के साथ सामुहिक बलात्कार करते है तब उस धडी की हैवानियत मे ये लोग चौपाए से भी बदतर हो जाते है तब ये दानव! दया-करुणा; लाज-षर्म; उचित-अनुचित; भत्स-विभत्स; सबसे परे होकर -ऐसे घृणित कार्य को अन्जाम दे देते है कि जिससे मानवता भी ष्षर्मसार हो जाती है। 

               पीडित महिला षरीर से घायल और आत्मा से लहुलुहान होकर दु;ख के महासागर मे डुबने उतरने लगती है। ऐसे महा दुख की अवस्था मे वह महिला न जी पाती है न मर पाती है ओर तो ओर वेदना एवम यन्त्रणा के इस दोर मेपीडिता से सहानुभूति तो कोर्इ भी जता देता है लेकिन साथ कोर्इ नही देता-न अपने न पराये; न समाज और न सरकार; तब वह बेसहारा महिला करे तो क्या करे ? अदालत का दरवाजा खटखटाये या पुलिस के पास जाये? हम सभी भी जानते है कि नतिजा तो फिर भी सिफर ही रहता है क्यो कि कानून व्यवस्था इतनी षिंिथल होती है कि न्याय मिलके मे या तो बरसो लग जाते है या साक्ष्य मिटा दिय जाते है तब साक्ष्य के अभाव मे न्याय मिलता ही नही है।उल्टे वकिलो की जिरह से बेचारी पीडित महिला के दिल पर दो चार घाव और लग जाते है।  

                     अब सवाल फिर से ये उठता हैे कि आखिर सभ्यता एवम सस्कारो वाले इस देष को एकदम यह क्या हो गया है? क्या हमारी परवरिष मे खोट पैदा हो गर्इ है? या फिर  एकल परिवारो के परिणाम सामने आने लगे है? या फिर आधुनिक जीवनषैली सिर पर चढ कर बोल रही है? या फिर पहनावा दुप्कृत्य करने वालो को आमन्त्रण दे रहा है? या कि मीडिया ही कुकृत्य हेतु उकसा रहा है? या कि आज की किताबी षिक्षा सही गलत मे भेद करना सिखाती ही नही है? आखिर क्या कारण है?

                    कहने का तात्पर्य यह है कि यदि आज हम कारण नही ढुढेगे और ऐसी सामाजिक बिमारी से निजात पाने के लिए कुछ ठोस कदम नही उठायेगे तो आगे आने वाली नस्ले हमे कभी माफ नही करेगी। इसके अलावा वर्तमान मे भी आज की सस्कारहीन युवा पिढी पुरे समाज को अ़धोगति की ओर ले जायेगी फलस्वरुप मा बहन बेटिया कही भी महफूज नही रहेगी।समाज का ढाचा चरमरा जायेगा और चारो तरफ अराजकता फैल जायेगी सम्भवतया दुप्परिणाम ओर भी भयकर रुप मे हमारे सामने आ सकते है जिनके बारे मेे सोचकर ही आत्मा काप उठती है अत; समय रहते ही हम चेेत जाये तो ही बेहतर होगा क्यो कि प्यार पुजा और लक्ष्मी पर्दे मे बसते है तभी तक अच्छे लगते है।हम अपनी लक्ष्मी पर किसी कि नजर भी पडने देना नही चाहते क्यो कि लक्ष्मी को सभी अपनी व्यकितगत बपौती समझते है तो मा बहन बेटिया भी तो आपकी अपनी है आपका अपना खून है कोर्इ उन पर गलत निगाह डाल भी कैसे सकता है?

                  वर्तमान हालातो को म़ददेनजर रखते हुए अब एक सवाल ओर उठ रहा है कि क्या आप अपने खुद के घर मे हादसा हो इसका इन्तजार कर रहे है? या कि डर रहे है? आखिर क्या बात है? हम बलात्कारियो का खुलकर एवम सामुहिकरुप से सब मिलकर विरोध क्यो नहि करते? अन्त मे सवाल सभी बुद्विजीवियो से पुछना है कि मर्दानगी बेबस एवम कोमल कमसिनो के साथ हुए बलात्कार की खबरे देखने; पढने एवम सुनने मे है या मर्दानगी जमकर विरोध करने मे है?-जवाब दे''''''''''''                                           
                                                           

अखिल भारतीय वैष्णव ब्राह्मण सेवा संघ की राष्ट्रीय कार्यकारणी बैठक की जलकिया ।

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