सोशल मीडिया की चुनाव में अहम भूमिका को स्वीकारते दल
भोपाल/ नगरीय निकायों के आम निर्वाचन चुनावों के बिगुल बजते ही राजनैतिक दलों के धुरंधर रणनीति बनाने में जुट चुके हैं। वहीं चारों ओर नेता रूपी सेनापति एवं कार्यकर्ता रूपी सेनायें मैदानों में सज चुकी हैं। हर किसी के अपने वादे और दावे हैं देखा जाये तो पूर्व के आम चुनाव से हटकर यह चुनाव सम्पन्न होने की बात सामने आ रही है। मकसद साफ है चुनावी समर में एक दूसरे को परास्त कर विजय का वरण करना और इसके लिये वह लगातार प्रयास रत देखे जा सकते हैं। वर्तमान समय में प्रचार-प्रसार के आधुनिक संसाधनों का उपयोग भी धडल्ले से किया जा रहा है। कम समय में अधिक लोगों तक बात पहुंंचाने का माध्यम बन चुका फेसबुक एवं ट्विीटर का सहारा लेते हुये नेता एवं राजनैतिक दल अपनी बात मतदाता पहुंचाने का कार्य करते हुये देखे जा सकते हैं। इनसे जुडे लोग जैसे ही अपनी साईड को खोलते हैं कि उनके सामने होता है अपने-अपने वादे और दावे से जुडी जानकारी। राजनीति के जानकारों की माने तो यह प्रथम अवसर होगा जब माईक के लाल पोस्टर,मंच,रैलियों,आम सभाओं के साथ सोशल मीडिया का सहारा लेते हुये नगरीय निकायों की चुनावी वेतरणी को पार करने का प्रयास करेंगे। लगातार बढते उक्त साईडों के एकाउंट इस बात का स्पष्ट उदाहरण कहे जा सकते हैं। विदित हो कि गत चुनावों के दौरान इनकी संख्या न के बाराबर थी जबकि सोशल मीडिया पर रहने वालों की संख्या कडोरों में बतलायी जाती है। ज्ञात हो कि गत लोकसभा एवं विधानसभा के आम निर्वाचन चलते जिस प्रकार सोशल मीडिया का प्रयोग हुआ एवं जो महत्वपूर्ण भूमिका सोशल मीडिया ने निभायी वह किसी से छिपी नहीं है।
लोकसभा,विधानसभा में सोशल मीडिया ने निभायी अहम भूमिका |
देश में 9 करोड से अधिक मतदाता करते हैं सोशल मीडिया का उपयोग |
प्रदेश के 279 सीटों के लिये निर्वाचन एक पर हाईकोर्ट का स्थगन |

प्रदेश के मतदाता-
उक्त निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले अनेक जहां युवा एवं नवीन मतदाता हैं तो वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया का प्रयोग करने वालों की संख्या भी सर्वाधिक बतलायी जाती है। लगातार बनते एकाउंट तथा नेताओं की साईडों के साथ ही उनके द्वारा अपने चहते उम्मीदवार या पार्टी की विचार धारा को मतदाता तक पहुंचाने के लिये लगातार प्रयोग किया जा रहा है। मध्यप्रदेश में एैसे मतदाता जो फेसबुक,वाटसअप,टूयूटर,हाईक या अन्य जो माध्यम हैं सोशल मीडिया के उनका इस्तेमाल कर रहे हैं। कहने का मतलब साफ है कि गत लोकसभा,विधानसभा के चुनावों की तरह नगरीय निकाय के चुनावों में भी इसका भरपूर लिया जायेगा। हालांकि इस सब पर निगरानी रखने के लिये निर्वाचन आयोग पूरी तरह तैयार है।
सोशल नेटवर्किंग साइट्स निगरानी-
लोकसभा चुनाव के दौरान इलेक्ट्रॉनिक प्रचार माध्यमों के साथ-साथ सोशल नेटवर्किंग साइट्स के उपयोग के संबंध में निर्वाचन आयोग ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स के मुख्य शिकायत निवारण अधिकारी को सजग रहने के निर्देश दिये हैं। आयोग ने कहा है कि भारतीय संविधान की धारा 324 के अंतर्गत भारत निर्वाचन आयोग पर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव संपन्न करवाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए आयोग ने दिशा-निर्देश तैयार किये हैं। आयोग ने कहा है कि पूर्व प्रमाणीकरण के बिना इंटरनेट एवं सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर किसी भी राजनैतिक विज्ञापन का प्रसारण न हो। हालांकि 2014 के चुनाव को लेकर सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग और इसके प्रभाव पर चुनाव आयोग भी अपनी नजर रखने का फैसला लिया है। आयोग के मुताबिक सोशल मीडिया पर होने वाला खर्च भी संबंधित राजनीतिक दलों के खर्च में जोड़ा जाएगा। जिसके लिए 2004 में आए अदालत के फैसलों को एक विस्तृत गाइड लाइन का आधार बनाया है, जिसमें यह सुनिश्चित करना भी शामिल है कि सोशल वेबसाइट के जरिये होने वाले खर्च को संबंधित राजनीतिक पार्टी के खर्च में शामिल किया जाए। इसके लिए चुनाव आयोग ने इन वेबसाइट्स पर निगरानी भी बढ़ा दी है। इसके लिए कुछ टीमें भी बनाई गई हैं, जो राजनीतिक दलों और इनके नेताओं की गतिविधियों पर नजर रखेंगी। यह फैसला एक खुलासे के बाद लिया गया है जिसमें यह दावा किया गया था कि गूगल हैंगआउट के जरिये हर पार्टी के नेता अपनी बात मतदाताओं तक पहुंचाने के साथ-साथ पार्टी के लिए फंड जुटाने में भी लगे हैं। सियासी दलों के कई नेता माइक्रो ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर भी मौजूद हैं और इसके जरिये भी वह अपनी बातें समय-समय पर लोगों तक पहुंचाते रहते हैं। यूट्यूब के माध्यम से भी राजनेता अधिक से अधिक मतदाताओं के करीब पहुंचने की कवायद में लगे रहते हैं।
दिखेगा असर-
देखा जाये तो युवाओं सहित बरिष्ठ नागरिक तक इन दिनों सोशल मीडिया पर दिखलायी देते हैं। वर्तमान समय मेें सोशल साइट्स पर प्रचार प्रसार के बाद युवाओं के बीच चुनावों में सहभागिता या भागीदारी का क्रेज भी बढ़ा है। कहने का तात्पर्य है कि जो युवा अन्य कार्यों यानि गीत संगीत,क्लब,रोमांस,फिल्म देखना या अन्य कार्य में ज्यादा लगा दिखलायी देता था वह अगर सोशल साईटों से जुडा है तो उसका असर चुनाव पर पडना लाजमी है। गत लोकसभा ,विधान सभा चुनावों के परिणामों को कौन नहीं जानता? हालांकि लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत माना जा सकता है कि जहां एक ओर पूर्व में युवाओं की रूची मतदान एवं राजनीति में कम होती थी वह अब मतदान के प्रतिशत लगातार बढ रहे हैं।