दमोह मध्यप्रदेश - जहां एक ओर मर्यादा पुरूषोम प्रभु श्रीराम की पावन कथा का श्रवण कर लोग अपने जीवन को सफल बनाते रहे हैं तो वही दूसरी ओर श्रीराममहायज्ञ के हवन कुण्ड से निकलने वाली पवित्र वालों से उठने वाला सुंगधित धुंआ क्षेत्र के सम्पूर्ण वातावरण को लगातार शुद्ध करतर रहा। यह सब होता रहा विशाल पर्वतों के समीप से कलकल कर बहती सरिता के तीरे सिथत जिले के ही सिद्धक्षेत्र कटाव धाम में सिथत लाल मंदिर में जहां धार्मिक कार्यक्रम का सिलसिला ब्रम्हमूर्हत से ही प्रारंभ हो जाता है जिसमें हवन पूजन के साथ ही प्रवचनों और भजनों की श्रृखंला देर रात्रि तक चलती रहती है। ज्ञात हो कि श्री श्री 1008 कटाव वाले दादा मृगननाथ जी सिद्ध महाराज की असीम —पा से श्री श्री 1008 श्री सीताशरण जू महाराज लोढा पहाड वालों के सानिग्ध एवं पं.उमाकांत प्यासी मुन्नू महाराज सुनवराह के कुशल मार्गदर्शन में सम्पन्न हुआ। सनातन धर्म के अनुसार विभिन्न प्रकार के हवन पूजन,अनुष्ठान,यज्ञ ,व्रतों का उल्लेख है जिसका अपना -अपना महत्व बतलाया गया है इन्ही में से एक है श्रीराम महायज्ञ जिसको शाश्त्रो में एक विशिष्ठ स्थान पर रखा गया है और धर्म के जानकारों की माने तो समस्त मनो कामनाओं को पूर्ण करने में इसका विशेष महत्व है। आयोजन के दौरान जहां एक ओर प्रात:काल से ही शंख,घडियालों की मधुर धुन के साथ ही विप्रों के द्वारा मंत्रों के उच्चारण के साथ ही निर्धारित कार्यक्रम प्रारंभ हो जाते थे तो वही दूसरी ओर श्रीराम कथा का श्रवण भी भक्तो को श्रीराम कथा का अमृतपान इलाहाबाद के संत श्री श्री 108 पागल दास जी ने करायी। इन्होने संगीतमय प्रवचन के दौरान प्रभु श्रीराम के चरित्र का अनुसरण करने का आग्रह किया। मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम ने सामाजिक समरसता के अनेक उदाहरण लोगों के बीच रखे हैं उन्होने उंच नीच का भेद भाव भी नही किया। चाहे जटायु की बात करें या फिर भीलनी शबरी के झुठे बेर खाने की हो या फिर निषाद राज को गले लगाने,राज धर्म के पालन की बात हो आप देखेंगे कि वह अनेक संदेश देते हैं। संत जी प्रतिदिन अपनी कथा के दौरान उपसिथत भक्तो को चिंतन करने पर मजबूर करते देखे जा रहे हैं। श्रीराम नवमी से प्रारंभ हुये महान धार्मिक कार्यक्रम में यज्ञाचार्य के रूप में वाराणसी के ही पं.यज्ञनारायण त्रिपाठी आयोजन को सम्पन्न कराया। उक्त आयोजन के अंतिम दिन हजारों भक्तों का जनसैलाब देखते ही बनता था जिन्होने यज्ञ मंडप की परिक्रमा के साथ ही प्रसाद लेकर अपना जीवन सफल बनाया।
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