
गांधीवादी अन्ना हजारे ने वर्ष 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ लंबा आंदोलन चलाया था। तब रामलीला मैदान से लेकर गांव की चौपाल तक एक ही चर्चा थी और वह था सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार। तब ऐसा लगता था मानो भारत से भ्रष्टाचार नाम की यह गंदगी हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। ...मगर जैसे ही आंदोलन ठंडा पड़ा चर्चा भी धीरे-धीरे ठंडी पड़ गई।
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले मजदूर के बेटे की कहानी
भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे और उनकी टीम अलख जगाने में लगी हुई है, लेकिन इंदौर के एक किशोर दीपक बिंदोरिया ने जिस जीवटता से एक भ्रष्ट बाबू को उसकी करनी की सजा दिलाई वह अपने आप में एक अनूठा उदाहरण है।
यदि देश भर के 'दीपक' इस मुहिम को अपना लक्ष्य बना लें तो निश्चित ही पूरे देश में ईमानदारी का 'प्रकाश' फैल जाए।
मध्यप्रदेश के इंदौर में रहने वाले दीपक से जब जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए सरकारी बाबू ने रिश्वत की मांग की तो उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई और अपनी सोच को पूरे अंजाम तक पहुंचाया। आइए, जानते हैं पूरी कहानी दीपक की जुबानी-
आपको भ्रष्टाचार से लड़ने की प्रेरणा कैसे मिली?
दो साल पहले समाजसेवी अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जो आंदोलन किया था, उसमें छोटे-छोटे बच्चों, बुर्जुगों आदि लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उसी को देखते हुए मेरे मन में भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत आई।
- बाबू को रिश्वत लेते रंगेहाथ कैसे पकड़वाया?
मैंने छोटे भाई और बहन के जाति प्रमाण पत्र के लिए कलेक्टर ऑफिस में आवेदन किया था। मुझे प्रमाण पत्र देने के लिए तारीख दी गई, लेकिन नियत तारीख को मुझे प्रमाण पत्र नहीं मिला। मैंने तीन हफ्तों तक कार्यालय के खूब चक्कर लगाए। जब मैं समाधान केंद्र गया तो वहां से मुझे तहसीलदार के पास भेजा गया और फिर एक बाबू से संपर्क करने को कहा गया। मैं एसडीएम विभाग में बाबू अनोखीलाल से मिला। जब मैंने उन्हें कहा कि मुझे प्रमाण पत्र की सख्त आवश्यकता है तब बाबू ने कहा कि प्रमाण पत्र बन जाएगा, लेकिन कुछ 'सेवा' लगेगी।
उन्होंने मुझसे रिश्वत के लिए 2000 रुपए की मांग की, लेकिन बाद वे 700 रुपए पर टूट गए। मैंने सारी बातें अपने बड़े पापा को बताई। उन्होंने मुझे लोकायुक्त में शिकायत दर्ज करने का सुझाव दिया। मैं लोकायुक्त गया, उन्होंने मुझे टेपरिकॉर्डर दिया और मैंने सारी बातचीत रिकॉर्ड कर ली। लोकायुक्त ने मुझे रंग लगे नोट भी दिए और कहा ये नोट बाबू को दे देना, साथ ही सिविल ड्रेस में लोकायुक्त की टीम भी मेरे साथ थी।
जब मैं बाबू के पास पहुंचा तो उन्होंने कहा कि रसीद में रुपए रखकर मुझे दे दो। मैंने प्रमाण पत्र के लिए बाहर खड़ा रहा, तब तक उसने अंदर जाकर नोट जेब में रख लिए। मैंने सिर खुजाकर अधिकारियों को इशारा किया तभी लोकायुक्त के अधिकारियों ने बाबू को पकड़ लिया और बाबू के हाथ धुलवाए जिससे उसके हाथ में रंग आ गया और बाबू रंगे हाथ पकड़ा गया।
यह तो आपकी व्यक्तिगत परेशानी थी, अगर कोई मदद लेना चाहे तो आप करेंगे?
मैं बिलकुल उनका साथ दूंगा। एक व्यक्ति ने मुझसे संपर्क भी किया है कि उससे सरकारी विभाग वाले काम करने के लिए पैसे मांग रहे हैं। मैंने उन्हें पूरी प्रक्रिया समझाई कि किस प्रकार रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार करवाया जा सकता है।

शुरू में मुझे थोड़ा डर जरूर लगा था, लेकिन मेरे बड़े पापा रामसिंह बिंदोरिया, जो एक समाजसेवी हैं, ने मुझमें साहस जगाया और इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया।
भविष्य में आप क्या बनना चाहते हैं?
मैं आईएएस की एक्जाम देकर कलेक्टर बनना चाहता हूं ताकि गरीब लोगों की मदद कर सकूं।
जीवन में क्या बदलाव महसूस कर रहे हैं?
पहले मुझे ऐसे काम में डर लगता था, लेकिन आज मुझमें हिम्मत आ गई है कि मैं भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा सकता हूं। मुझे इस बात की भी खुशी है कि मुझे न सिर्फ मेरे प्रमाण पत्र मिल गए बल्कि एक भ्रष्ट बाबू को भी मैंने सबक सिखा दिया। उम्मीद है अन्य सरकारी कर्मचारी भी इससे जरूर सबक लेंगे।